सतही दरारों में सरक-सरक भरती है
समय की रेत हर पल
फिर सब कुछ दिखता
सपाट, सीधा और धूसर
पर भीतरी मन की दरारें
होती हैं आर-पार
उस पर नहीं रुकती
वक़्त की धूल
फिसल जाते हैं, ज़िन्दगी के किरदार
रिश्तों के दरख्त नहीं जमाते जड़
बन जाते कोयला माटी में सड़
ज़िन्दगी की खटास से
फटती बढ़ती भावनाओं की दरारें
निराश-हताश फटे दिल में
धुकधुकाती ऊर्जा के बेसुरे ताल
इन्ही ‘भू-गर्भीय
फौल्टों’ में
डोलता है ज़िन्दगी
का भूचाल
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ReplyDeleteIndira Gupta
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वाह ...👌👌👌👌👌
कितना अद्भुत कितना साम्य है
इंसा और प्रकृति मै
डली दरारे दोनो अँदर
भू दोलन की प्रवर्ती ने
नहीँ कभी भरती कम होती
कितने भी पैबंद धरो
टूटा टुकड़ा सरक ही जाता
चाहे जितने जतन करो !
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Nov 21, 2017
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Vishwa Mohan
+Indira Gupta
बहुत सुन्दर कथ्य आपका ! आभार!!!
Nov 21, 2017
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Indira Gupta
+1
+Vishwa Mohan 🙏
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ReplyDeleteRoli Abhilasha (अभिलाषा)
+1
भूचाल यूँ तो रोज़-रोज़ नहीं आते
आते हैं हर आंसू मुस्करा उठता है।
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Nov 21, 2017
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Pushpendra Dwivedi
+1
जीवन के यथार्थ का मार्मिक चित्रण अतिसुन्दर
Nov 21, 2017
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Vishwa Mohan
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+#Ye Mohabbateinआभार आपके आशीर्वचनों का!!!
Nov 22, 2017
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Vishwa Mohan
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+Pushpendra Dwivedi आभार आपके आशीर्वचनों का!!!
Nov 22, 2017
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Pushpendra Dwivedi
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+Vishwa Mohan हार्दिक स्वागत है आपका
Puja Puja: रिश्तों की स्थिति को बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाती एक सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह
Vishwa Mohan: +Puja Puja आभार!!!
NITU THAKUR: very nice...bhuchal
ReplyDeleteVishwa Mohan: +Nitu Thakur नीतुजी, आभार आपके आशीर्वचनों का!!!
NITU THAKUR: very nice...bhuchal
ReplyDeleteVishwa Mohan: +Nitu Thakur नीतुजी, आभार आपके आशीर्वचनों का!!!
धरती के भूचाल से भी कहीं अधिक भयावह है भावनाओं का भूचाल जो आत्मा को खंड -खंड करने से नहीं चूकता|
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!!
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