सुत गई गोरी, ऑखें खोली,
बिंदिया, चूड़ी, कुमकुम रो ली I
सजा बिछौना, उड़े
पताका,
बंध गयी बांस में, जीवन-गाथा I
सजी सेज़ में, लगे लुआठी,
भसम हुआ सब, हो गया माटी I
आसमान से बहे बयरिया,
अगियन की लपटन धधकाये I
पानी भाप बन, उड़ गये उपर,
तन माटी बन, धुल धुसराये I
खतम खेल अब, बुझ गयी बाती,
बिदा बहुरिया, बचे
बाराती ! खतम खेल अब, बुझ गयी बाती,
आज
बाराती, कल बहुरिया,
जीव-जगत के एही चकरियाI
जीव-जगत के एही चकरियाI
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ReplyDeleteRenu
+1
विदा बहुरिया --
हुई बेगानी जग नगरिया --
आज बाराती कल राही उसी पथ के --
जहाँ आज तुम सो गई थक के ---
पर विरह में विकल सावंरिया -
पल पल छलकाए नैन गगरिया -- विदा बहुरिया -- लोक रंग में सजी सुंदर रचना
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Nov 3, 2017
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Vishwa Mohan
+Renu आभार !!!
NITU THAKUR's profile photo
ReplyDeleteNITU THAKUR
+1
lajawab...
shandar....
jandar....
behetarin.....
list bahot lambi ho jayegi
Nov 4, 2017
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Vishwa Mohan
+1
+Nitu Thakur आभार!!!
Nov 4, 2017
अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
अमित जैन 'मौलिक'
Owner
+1
Wahhhhhh। बहुत बहुत शानदार। छोटे लेकिन बड़े पैने सटीक संतुलित गागर में सागर वाले छंद युक्त रचना।
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Nov 4, 2017
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Vishwa Mohan
आभार!!!
Punam Mohan's profile photo
ReplyDeletePunam Mohan
+1
nache barati, vida bahuriya.......... jeevan ka hai yahi chakariya!!
Jun 19, 2014
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Vishwa Mohan
आज बाराती , कल बहुरिया ,
जीव-जगत की एही चकरिया।
Jun 20, 2014
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Vishwa Mohan
+Punam Mohan वाह! बिलकुल सत्य!!!
जीवन के अटल सत्य को उद्घाटित करती मार्मिक रचना ।
ReplyDeleteविदा बहुरिया !
हुई बेगानी जग नगरिया !
जहाँ आज तुम सो गई थक के
आज बाराती कल राही उसी पथ के
साँस -साँस संग घटता जीवन
थमे ना पल भर काल का पहिया
हुई बेगानी जग नगरिया !
नश्वर जीव -जगत का नाता
जो बिछुड़ा ना लौट के आता
पर विरह में विकल साँवरिया
पल -पल छलकाए नैन गगरिया
हुई बेगानी जग नगरिया !
विदा बहुरिया!!
सादर 🙏🙏💐💐🙏🙏
जीव-जगत के परम सत्य का सुंदर चित्रण। सत्यम, शिवम, सुंदरम। आभार।
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