Saturday, 28 June 2014

प्रेम-जोग

आ री गोरी, चोरी चोरी
मन मोर तेरे संग बसा है.
राधा रंगी, श्याम की होरी
ब्रज में आज सतरंग नशा है.

पहले मन रंग, तब तन को रंग
और रंग ले वो झीनी चुनरिया.
प्रेम-जोग से बीनी जो चुनर
उसे ओढ़ फिर सजे सुंदरिया.

रहे श्रृंगार चिरंतन चेतन
लोचन सुख, सखी लखे चदरिया.
अनहद, अनंत में पेंगे भर ले
अब न लजा, आजा तु गुजरिया.

लोक-लाज के भंवर जाल में
अटक भटक हम दूर रहे हैं.
चले सजनी, अब इष्ट लोक में
देख,  प्रपंची घूर रहे हैं.

दुनियावी कीचड़ में धंसकर,
कपट प्रपंच के पंक मे फंसकर.
अज्ञान के अंध-कुप में
रहे भटकते लुक-लुक छिपकर.

अमृत सी मेरे प्यार की छैंया
सोये गोरी,  जागे सैंया.
लो फिर, नयनन फेरी सुनैना
बसे पिया के अंखियन रैना.

साजन निरखे पल पल गोरी
वैसे,  जैसे चांद चकोरी.
भोर हुआ, अब आ सखी उठें
अमर यात्रा है, अब ना रुठे.

प्रमुदित मन और मचले हरदम
विश्व पर बरसे अमृत पुनम.
मैं पुरुष,  तेरा अभिषेक हूँ
ना मैं’, ना तुम’, मैं-तुम एक हूँ.
          ----------------- विश्वमोहन

1 comment:

  1. NITU THAKUR: जी वाह अति सुंदर पंक्तियाँ, दिल को छू गईं।
    Vishwa Mohan: +Nitu Thakur उत्साहवर्द्धन हेतु सादर आभार!!!

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