मैं चिर प्रणय की प्रात लाली/
तू छलना निर्वात आली//
मैं पुष्प प्रीत पराग वेणु/
स्वाति सुधा संग सीप रेणु//
मैं चमकता स्वर्ण शबनम/
दूध सी तू रजत पूनम//
ब्रह्माण्ड के आकाश में/
तू रासे विश्व लास में//
प्रणय विजय में तुम्हारी/
प्रीत का पय पान कर//
प्रेम तरल अधर रस से/
अमर जल को छानकर//
घोल हिय के पीव अपना/
पान करता थारकर//
तू हार जाती जीतकर/
मैं जीत जाता हारकर!//
जब सहज यह प्रकृति /
अंतर्द्वंद्व है किस बात का//
भाव अभाव, सत असत/
जीव-ब्रह्म, असमानता //
भावों की
असमानता से/
बीज रचना के बटोरूँ
//
आंसू के फिर नयन घट
में /
उर्वरक वो प्रीत घोरुं //
मै समर्पित, मौन प्रिये
/
विरह विगलित गरल
पीलें//
चल न मन एकांत में तू/
जहां सृजन के
फूल खिले//
घोल हिय के पीव अपना/
ReplyDeleteपान करता थारकर//
तू हार जाती जीतकर/
मैं जीत जाता हारकर!//
सरस और मधुर सृजन 👌👌👌🙏🙏🌺🌺
हार्दिक आभार🙏🙏
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