Friday, 21 April 2017

विभ्रम 'क्रम-भ्रम' का!

सनसनाती हवाओं का श्मशानी सीना,
धू धूआता धुंआ, धनकती चिता,
नाक के नथुनों में भरती
मांसल गंध, अर्द्ध झुलसी लाश,
कानों को खटकाती
'चटाक' सी चटकती
टूटती उछलती हड्डी

खड़ी-पड़ी आकृतियाँ
इंसानी सी शक्लों की
झोंकें हैं अपने को
अपनी अपनी लय में,
भर भर आँखों से
कराने को निर्जीव देह
का अग्नि स्नान चिता पर

और इस धधकते शरीर का ' मैं '
निमग्न, निहारने में निर्निमेष!
कभी दहकती अपनी निर्जीव देह
आग की थिरकती लपटों में, और
कभी सिहुरती निहुरती इर्द गिर्द
सजीव सी श्लथ लाशों को
जगत की जिजीविषा की ज्वाला में

अब जाके जगती हैं ज्ञान की इन्द्रियाँ,
जैसे जैसे, जर्रा जर्रा, झुलसता है इसका.
छूता हूँ प्रकम्पित पवन, तिल तिल कर
अश्मों में बदलते अंग,उनको झुलसाती लपटें,
छिड़के अभिमंत्रित जल की शीतलता,
जलती लकड़ियों के घहराकर गिरने का स्वर
और चंद कदम दूर चकराती चीलों की चीत्कार!

अब जाके अघाई हैं अपलक पलकें!
निहारता हूँ पल पल मन भर
सोचता हूँ 'बुद्ध' बन बुद्धि भर
और भरता हूँ अंतस अहंकार भर
पर मन, बुद्धि, अहंकार मिलकर
सब फलित हो जाते हैं महाशून्य में
समाहित होकर आत्मा के उत्स में

.......................सत्ता हीन 'सत' में,
जहां मैं अविकार, सूक्ष्म, शांत, अज,
अनादि, नित्य, अनंत, शाश्वत चित्त!
समाहित, परम आनंद के महाशून्य में  
और अहसासता, शून्य का चेतन आनंद!
'नहीं होने' से 'होते हुए', 'नहीं होना' हो जाना
भोगता इसी 'क्रम का भ्रम' और ' भ्रम का क्रम'!

1 comment:

  1. अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
    अमित जैन 'मौलिक'
    Owner
    +1
    सनसनाती हवाओं का श्मशानी सीना,
    धू धूआता धुंआ, धनकती चिता,
    नाक के नथुनों में भरती
    मांसल गंध, अर्द्ध झुलसी लाश,
    कानों को खटकाती
    'चटाक' सी चटकती
    टूटती उछलती हड्डी।।

    हम तो कविता के लालित्य में ही इतने धुत्त हो गये की भाव समझने की सुध ही नही। waahhhhhhhh कविवर। आपसा दूजा नही पढ़ा। दूजा नही मिला। बस सुपर से ऊपर....👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
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    Sep 28, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +2
    +अमित जैन 'मौलिक' .....और हम आपकी स्नेह सिक्त साहित्यिक संस्तुति से संतृप्त! काश! हम अपने आभार की लघुता में आपकी असीम उदारता की सीमा तय कर पाते!

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