(१)
तूने अपनी सोच बताई।
मैं नही सोच पाता,
तुम्हारे लिए!
अब सोच रहा हूँ,
सोच के किस स्तर पर
सोच रहे हैं हम ?
मन, बुद्धि या अहँकार!
आत्मा तो अज अविकार।
सोच के संकुचन से रीता।
(२)
अच्छा हुआ, नही किया,
तूने अध्यारोप
कि, घोलूँ मैं तुममें
विकार।
अंतस की आत्यंतिक
रूहानियत में रचे बसे,
मेरे प्यार।
निर्गुण, निरीह, निराकार।
अनंत, अपार।
(३)
गूँज, विसरित स्वर-सुरों की मेरी
विस्फारित, पाती विस्तार।
आशा की भुकभुकाती ढ़िबरी
कि सुन रही होगी सूनेपन में,
अगणित प्रक्षिप्त छवियों
में से ही तुम्हारी कोई एक!
इस अनहद नाद को मेरे,
सरियाने को साम,
स्पंदन की शाश्वतता का!
तूने अपनी सोच बताई।
मैं नही सोच पाता,
तुम्हारे लिए!
अब सोच रहा हूँ,
सोच के किस स्तर पर
सोच रहे हैं हम ?
मन, बुद्धि या अहँकार!
आत्मा तो अज अविकार।
सोच के संकुचन से रीता।
(२)
अच्छा हुआ, नही किया,
तूने अध्यारोप
कि, घोलूँ मैं तुममें
विकार।
अंतस की आत्यंतिक
रूहानियत में रचे बसे,
मेरे प्यार।
निर्गुण, निरीह, निराकार।
अनंत, अपार।
(३)
गूँज, विसरित स्वर-सुरों की मेरी
विस्फारित, पाती विस्तार।
आशा की भुकभुकाती ढ़िबरी
कि सुन रही होगी सूनेपन में,
अगणित प्रक्षिप्त छवियों
में से ही तुम्हारी कोई एक!
इस अनहद नाद को मेरे,
सरियाने को साम,
स्पंदन की शाश्वतता का!
अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
ReplyDeleteअमित जैन 'मौलिक'
Owner
+1
तूने अपनी सोच बताई।
मैं नही सोच पाता,
तुम्हारे लिए!
अब सोच रहा हूँ,
सोच के किस स्तर पर
सोच रहे हैं हम ?
संज़ीदगी से भरा दार्शनिक चिंतन प्रस्तुत करती सुंदर रचना।
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Sep 26, 2017
Vishwa Mohan's profile photo
Vishwa Mohan
आभार!!!
Roli Abhilasha (अभिलाषा): Bahut khub.
ReplyDeleteSpandan shabd hi kafi hai man ko jhankrit karne k liye.
Vishwa Mohan: +#Ye Mohabbatein बहुत आभार आपका!