तुम्हारी ' शाश्वतता।
तिल तिल घुलती
'मेरी' सत्ता।
और विश्वात्मकता,
में होता विलीन,
विलंबित ताल में
'मेरा' विश्व!
भटकता, 'मैं' सांत!
विराट अनंत में 'तुम्हारे'।
विस्मृत कर कि
'तुम्हारे' असीम,अखंड
अनंत, अनगढ़ विस्तार
की ज्योतिर्मयी क्षिप्र छाया
और 'तुम्हारे' निर्गुण की
'मैं' सगुण माया!
प्रभु, मुक्त करो
इस भेद से!
'तुम' और 'मैं' के!
तिल तिल घुलती
'मेरी' सत्ता।
और विश्वात्मकता,
में होता विलीन,
विलंबित ताल में
'मेरा' विश्व!
भटकता, 'मैं' सांत!
विराट अनंत में 'तुम्हारे'।
विस्मृत कर कि
'तुम्हारे' असीम,अखंड
अनंत, अनगढ़ विस्तार
की ज्योतिर्मयी क्षिप्र छाया
और 'तुम्हारे' निर्गुण की
'मैं' सगुण माया!
प्रभु, मुक्त करो
इस भेद से!
'तुम' और 'मैं' के!
क्षिप्र
अव्यय
- 1.शीघ्र, जल्दी।
- 2.तुरंत।
विशेषण
- 1.अस्थिर, चंचल।
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