अहर्निश आहुति बनकर,
जीवन की ज्वाला-सी जलकर,
खुद ही हव्य सामग्री बनकर,
स्वयं ही ऋचा स्वयं ही होता,
साम याज की तू उद्गाता।
यज्ञ धूम्र बन तुम छाई हो,
जल थल नभ की परछाई हो,
सुरभि बन साँसों में आई,
नयनों में निशि-दिन उतराई,
मेरी चिन्मय चेतना माई।
मंत्र मेरी माँ, महामृत्युंजय,
तेरे आशीर्वचन वे अक्षय,
पल पल लेती मेरी बलैया,
सहमे शनि, साढ़ेसाती-अढैया,
मैं ठुमकु माँ तेरी ठइयाँ।
नभ नक्षत्रो से उतारकर,
अपलक नयनों से निहारकर,
अंकालिंगन में कोमल तन,
कभी न भरता माँ तेरा मन,
किये निछावर तूने कण कण।
गूंजे कान में झूमर लोरी,
मुँह तोपती चूनर तोरी,
करूँ जतन जो चोरी चोरी,
फिर मैया तेरी बलजोरी,
बांध लें तेरे नेह की डोरी।
तू जाती थी, मैं रोता था,
जैसे शून्य में सब खोता था,
अब तू हव्य और मैं होता था,
बीज वेदना का बोता था,
मन को आँसू से धोता था।
सिसकी में सब कुछ कहता था,
तेरी ममता में बहता था,
मेरी बातें तुम सुनती थी,
लपट चिता की तुम बुनती थी,
और नियति मुझको गुनती थी।
हुई न बातें अबतक पूरी,
हे मेरे जीवन की धुरी,
रह रह कर बातें फूटती हैं,
फिर मथकर मन में घुटती है,
फिर भी आस नहीं टूटती है।
कहने की अब मेरी बारी,
मिलने की भी है तैयारी,
लुप्त हुई हो नहीं विलुप्त!
खुद को ये समझा न पाया,
माँ, कुछ तुमसे कह न पाया!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 13 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी,अत्यंत आभार।
Deleteनवरात्रि के पावन पर्व पर,आपकी ये सुंदर रचना मंत्र मुग्ध कर रही है, देवी मां से लेकर जन्मदायिनी मां तक पहुंचती आपकी उत्कृष्ट पंक्तियां मां के विभिन्न स्वरूपों का सुंदर उल्लेख कर रही हैं,सुंदर रचना तथा नववर्ष,नवरात्रि के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteआदरणीय विश्वमोहन जी, जगदम्बा माँ के पावन नवरात्रों में दिवंगत जन्म दात्री का स्मरण करती भावपूर्ण अभिव्यक्ति अपने आप में विशेष है। माँ जो भले सदैव पास नहीं रहती पर माँ से मन का संवाद सदैव बना रहता है, जो अदृश्य, अरूप रहकर भी मन की व्यथा सुनती रहती है। प्रस्तुत रचना में माँ के साथ बीते पलों की स्मृतियाँ मार्मिक शब्दों में जीवंत हो उठी हैं साथ में अनकही पीड़ा जनित भावों की गंगा अविरल बह उठी हैं। बहुधा , यूँ बेटियाँ माँ को याद किया करती हैं पर एक बेटे की ये भावांजलि हृदयस्पर्शी है और भाव -विहल् करती है ,जिसके लिए सराहना के शब्द नहीं। माँ को याद करना भी सच्चे अर्थों में दुर्गा माँ के समस्त रुपों का स्मरण है। आपको हार्दिक बधाई इस रचना विशेष के लिए🙏🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteहिन्दू नववर्ष, संवत 2078, मिति चैत्र बदी, प्रतिपदा, नवदुर्गा प्रारंभ और बैसाखी की आपको सपरिवार अनन्य शुभकामनाएं💐🙏👏🏼🌸🥀🌺🌷🌹🍁🇮🇳
ReplyDeleteत्योहारों की सपरिवार शुभकामनाएँ!!!
Deleteजी, अत्यंत आभार।
ReplyDeleteमां अनन्त है उसकी कथा अनन्त और अनन्त हैं अभिव्यक्तियां भी मां के लिये। अदभुद ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteमाँ के विभिन्न रूपो का वर्णन करती बहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteजी, अत्यंत आभार!!!
ReplyDeleteकहने की अब मेरी बारी,
ReplyDeleteमिलने की भी है तैयारी,
लुप्त हुई हो नहीं विलुप्त!
खुद को ये समझा न पाया,
माँ, कुछ तुमसे कह न पाया!
जन्मदायनी माँ की वंदना कर ली तो कुछ शेष बचा ही नहीं। हमेशा की तरह अद्भुत सृजन ,
आपको नववर्ष और नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये
जी, अत्यंत आभार आपके आशीर्वचनों का!!!
DeleteThe unseen umbilical cord between a mother and child remains even after being surgically severed at birth. You are anguished at the thought that your were unable to communicate to your mother all that you wished, but she knew anyhow.
ReplyDeleteTouching expression! The poem brought tears to my eyes.
My heartfelt gratitude for your good words!!!
Deleteबहुत अच्छी कविता।सादर अभिवादन
ReplyDeleteआप तो बहुत ही अच्छा लिखते है, माँ के सम्मान में लिखी गई ये अद्भुत रचना है , एक एक शब्द गहरे भाव से बंधे हुए है,पढ़कर भावुक होना स्वभाविक है, माँ के सीने की हर साँस तपस्या है। नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, जय माँ भवानी जय माँ अम्बे, सादर नमन
ReplyDeleteजी, आपके सुंदर आशीर्वचन का हृदय से आभार।
Deleteमंत्र मेरी माँ, महामृत्युंजय,
ReplyDeleteतेरे आशीर्वचन वे अक्षय,
पल पल लेती मेरी बलैया,
सहमे शनि, साढ़ेसाती-अढैया,
मैं ठुमकु माँ तेरी ठइयाँ।
माँ के आँचल की छाँव में सारे कष्ट मिट जाते हैं माँ जब बलाएं लेती है तो सारे ग्रह दोष भी शान्त हो जाते हैं माँ की यादों की और माँ के प्रति अपने उद्गारों की ऐसी उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति आपने की है जो सराहना से परे है...।
लाजवाब बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!!
जी, आपके सुंदर शब्दों का हृदय से आभार!!!
Deleteबस इतना ही कहना है विश्वमोहन जी कि पढ़कर मैं अभिभूत हो गया हूँ।
ReplyDeleteअद्भुत रचना।
ReplyDeleteजी, आपके अनुपम आशीष का आभार।
Deleteमाँ के अटूट विश्वास नेह के बन्धन में बहुत ही सुन्दरता से बांधा है । अति सुन्दर भाव एवं सृजन ।
ReplyDeleteअत्यंत आभार अमृता जी!!!
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