प्राची के आँचल में नभ से,
उषा की पहली रश्मि आती।
पुलकित मचली विश्व-चेतना,
जीवन में उजियारी छाती।
मन के घट में, भोर प्रहर में,
जीवन-रंग बिखरता है।
जीव-जगत का जंगम जीवन,
मन अनंग निखरता है।
चहकी चिड़िया,कूजे कोकिल,
साँसों में बसंत मचलता है।
किरणों से ज्योतित जड़-चेतन,
भाव तरल- सा बहता है।
आसमान में इंद्रधनुष की,
चित्रकला-सी सजती है।
क्षितिज-छोर के उभय कोर से,
आलिंगन में लगती है।
प्रणय कला का यह अभिनय,
हर दिवस प्रहर भर चलता है।
प्रेमालाप के प्रखर ताप में,
डाह से सूरज जलता है।
फिर ईर्ष्या में धनका सूरज,
सरके सरपट अस्ताचल में।
दुग्ध-धवल-सी सुधा चांदनी,
उतरी विश्व के आंचल में।
आज अमावस और कल राका,
गति ग्रहण की आती है।
यही कला है समय चक्र की,
कालरात्रि दुहराती है।
जनम से अंतिम लक्ष्य बनी वह,
महाकाल की,रण भेरी।
हरदम हसरत में हंसती,
मनमीता है, वह मेरी।
एक वहीं जो,अभिसार की,
मदिरा हमें पिलाएगी।
आलिंगन में लेकर हमको,
शैय्या पर ले जाएगी।
अग्नि से नहलाकर हमको,
नए लोक में लाएगी।
शुरू सिफ्र से नया सफर फिर,
गीत गति का गायेगी।
साधन से साध्य तक का सफर । असाध्य हुक हृदय में उठाती हुई । अनुपम और अप्रतिम ।
ReplyDeleteआपके विचार-प्रवण विश्लेषण का विशेष आभार!!!
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteसुंदर रचना। जीवन के पूरे सफर का अच्छा चित्रण किया है आपने।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteजीवन का विहंगम दृश्य एक सुंदर कविता में आपने सहेज और समेट दिया, इतनी सुंदर भवाभिव्यक्ति के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपके सुंदर वचन का।
Deleteसुंदर गीत ।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार!!
Deleteआपने अपनी रचना में जीवन के भोर से होते हुए जेवन के अंत के बाद की स्थिति तक को समेट लिया है । पूरा जीवन चक्र आंखों के सामने घूम गया । बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपके आशीर्वचन का!!!!
Deleteसार्थक रचना।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। आपकी टिप्पणी हमेशा मेरे लिए ख़ास होती है।
DeleteThe legend accompanying the header of your blog says "bhatakne ko yoni dar yoni"...such a troubled and dismal comment. Your poem , on the other hand provides a positive direction to the journey called life and the life beyond .It celebrates each day and also prepares us to accept death with alacrity, which is not the end but just another station in the endless "Safar".
ReplyDeleteInsightful!!
Thanks a lot Rashmi for your appreciation and the element of novelty which your comments are usually imbued with. This poetry is on the positive note of enjoying the eternal life cycle in the material world. To the other hand, the header is an extract of my another poetry where the soul struggles for emancipation from this material cycle to merge into the 'Param-atm tatv' what the hinduism calls 'moksh', the Buddhists call 'Parinirvan' and perhaps the christians call it 'Salvation'. The link of the header poetry is as follows for a ready reference:
Deletehttps://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2016/10/blog-post_13.html?m=1
जीवन-यात्रा का शब्द-चित्र अंकित करती सुन्दर, सरस रचना!
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
जी, अत्यंत आभार आपके सुंदर वचन का!!!
Deleteआदि से अंत तक की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
जी, हार्दिक आभार आपके उत्साहवर्द्धक शब्दों का।,🙏🙏🙏
Deleteआदरणीय विश्वमोहन जी , बड़ी ही सादगी से जीवन यात्रा को बड़े मनमोहक शब्दों में समेटती आपकी रचना, , जीवन के शाश्वत चक्र का जीवंत शब्दचित्र है | जन्म की किलकारी से लेकर अग्निस्नान तक मानव में अमरत्व की कामना व्याप्त रहती है इसी कौतुक में जीवन का निश्चित अवसान भांप नहीं पाता| अलंकृत भावपूर्ण सार्थक सृजन के लिए बधाई और शुभकामनाएं| सादर
ReplyDeleteजी, आपकी समीक्षा सदैव रचनाओं का सांगोपांग चित्र प्रस्तुत करती हैं भविष्य के लिए रचनात्मकता का बीज छीट जाती है। अत्यंत आभार आपका!!
Deleteसमय चक्र की यही कला //नवभोर उगी और दिवस ढला !//
ReplyDeleteसजा हुआ जीवन अभिनय से/मोहजनित भ्रामक प्रणय से //
पल -पल बीतता दौर चला ,/समय चक्र की यही कला //
थमती ना गति ऋतुचक्र की /बसंत सजे पतझड़ बीते //
अमरत्व की लिए कामना//मानव पग- पग पर गया छला //
समय चक्र की यही कला !///
वाह! उत्कृष्ट काव्यात्मक संवाद। आभार!!!
Deleteबहुत ही सुदर कविता...वाह क्या खूब कहा कि - मन के घट में, भोर प्रहर में,
ReplyDeleteजीवन-रंग बिखरता है।
जीव-जगत का जंगम जीवन,
मन अनंग निखरता है।...बहुत खूब
जी, अत्यंत आभार उत्साह जगाने वाले आपके शब्दों का।
Deleteअग्नि से नहलाकर हमको,
ReplyDeleteनए लोक में लाएगी।
शुरू सिफ्र से नया सफर फिर,
गीत गति का गायेगी।
जीवन दर्शन करती लाजबाब सृजन,सादर नमन आपको
जी, अत्यंत आभार आपके प्रेरक शब्दों का।
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन
बधाई
जी, अत्यंत आभार!!!!
Deleteअनुपम, अद्भुत काव्य रचना , जीवन यात्रा का सुंदर वर्णन ,मुग्ध करती ,हार्दिक बधाई हो, सादर नमन
ReplyDeleteमुझे खेद है विश्वमोहन जी कि आपके पृष्ठ पर अत्यंत विलम्ब से आया हूँ। आपकी काव्य-रचनाएं तो भाव-विभोर कर देती हैं। टिप्पणी करने के स्थान पर यही मन करता है कि पुनः-पुनः पढ़ता रहूँ, आनंदित होता रहूँ।
ReplyDeleteजी, आपके अनुपम आशीष का आभार!!!
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