Thursday, 24 June 2021

भोजपुरी और अश्लीलता (भोजपुरी दिवस पर विशेष)


 कबीर जयंती को भोजपुरी दिवस के रूप में मनाया जाता है। कबीर की रचनाओं ने भक्ति आंदोलन को एक नया कलेवर प्रदान किया। कुरीतियों एवं अंधविश्वास पर कबीर ने गहरा प्रहार किया। सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना करने वाले कबीर की भोजपुरी आज स्वयं अश्लीलता और गंदगी का शिकार बन गयी है। भोजपुरी गाने और फिल्मों के संवाद कुरूप और बदरंग होते जा रहे हैं। इन कुसंस्कारों और विसंगतियों से त्राण पाने हेतु यह भाषा छटपटा रही है। 'चकोर' नामक सामाजिक मंच इस दिशा में एक आंदोलन को आकार देने के लिए प्रयासरत है। भोजपुरी सहित अन्य भाषाओं को भी इस गंदगी से मुक्त कराने की महती आवश्यकता है। इस दिशा में 'चकोर' मंच से हमारे उद्बोधन पर विचार करें। साथ ही भोजपुरी में लिखे  मेरे इस गीत  का रसास्वादन करें:


मैना करेली निहोरा अपना तोता से,

तनी ताक न गल थेथरु अपना खोता से।


बाहर निकलअ,

देखअ कइसन,

उगल बा भिनसरवा।

चिरई-चिरगुन,

चहक चहक के,

छोड़लेन आपन डेरवा।

मैना करेली.....


खुरपी कुदारी,

हाथ में लेके

चालले खेत किसान।

पिअरी माटी,

अंगना लिपस,

तिरिया बर बथान।

मैना करेली...


घुनुर घुनुर,

गर घंटी बाजे,

बैला खिंचे हर।

आलस तेज,सैंया 

बहरा निकलअ,

चढ़ गइल एक पहर।

मैना करेली निहोरा..


धानी चूड़ी,

पिअरी पहिनले,

और टहकार सेनुर।

दुलहिन बाड़ी,

 पेड़ा जोहत,

सैंया बसले दूर।

मैना करेली...


तोहरो कब से

असरा देखी,

बलम बाहर कब अइब।

नेह के पाँखि,

अपना हमरा,

मंगिया पर छितरईब।


मैना करेली,निहोरा अपना तोता से

तनी ताकअ न गलथेथरु अपना खोता से।





37 comments:

  1. "भोजपुरी गाने और फिल्मों के संवाद कुरूप और बदरंग होते जा रहे हैं। इन कुसंस्कारों और विसंगतियों से त्राण पाने हेतु यह भाषा छटपटा रही है।" बिलकुल सही कहा आपने। इसपर सरकार को कार्यवाही करनी चाहिए काहे से की गांव देहात क संस्कृति सभ्यता कुल बिगड़ल जात बा। जनता के भी विरोध करे के चाही काहे से की घर के छोट से छोट लइका इ कुल गाना बड़ा जल्दी याद कय लेवे न। आज कल त केहू भी सोशल मीडिया पर घटिया गाना गा के फईला देत बा।
    बाकी गीत बड़ा सुन्दर बा..!🌻🙏

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    1. जी, एकदम जायज़ बात कहनी अपने। अब एमे सरकार से कौनो उम्मीद कइल पथर से माथा फोड़े के बराबर बा। अब जे होई से जनता जनार्दन के बूते ही होई। बहुत आभार अपने के निमन बात ला।

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  2. बहुत बहुत सुन्दर लेख |कुछ विशेष जानकारियाँ देने के लिए धन्यवाद |

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  3. रोचक, ज्ञानवर्धक और प्रासंगिक आलेख!

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  4. भाषा तो बहुत रसीली और मीठी है लेकिन शायद चलचित्रों के माध्यम से इसे अश्लीलता से परोसा जा रहा है ।
    सार्थक लेख ।

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  5. बहुत सुंदर सृजन आदरणीय ।

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  6. रउआ के नमस्कार बोल तानी ! राउर "मैनिया" के आपन "गलथेथरु तोतवा" से कइल निहोरवा तअ देखवे कईन्नी हअ .. मिज़ाज हरिहर हो गईल हअ .. आउर साथे राउर 39 मिनट आ 10 सेकेंड वाला वीडियो भी कान में इअरफोनवा के ठूंस के ढेरे सबुर से सुननी हअ ..पूरा इतिहास आउर भूगोल के कूल्हे किलास ले लेनी हअ रउआ आपन (गलथेथरी) कहे में ...
    इ मोट दिमाग में राउर दुए गो बतवा समाइल हअ कि हमनी के समाज दोगला समाज बा .. कहे ला कुछो .. आउर करे ला कुछो .. सेही से तअ इ हाल बा। रउए सोंची कि .. का कौनो इ असलील (अश्लील) लिखे वाला के फिल्मवा आ चाहे गनवा से जेबी कइसे भरेला ? खाली मजूर आ जहिलवन के देखे-सुने से ? ओकरा में पढ़ल-लिखल समाज के वेखति भी घुसल बा। पर का बा कि उ सभे कम उमिर के बा। आ ओकर बदलाव, मने ओकर विवेक जगावे के पड़ी, जे से उ नीमन आ बाउर सोच सके। जेह दिन नीमन आ बाउर में फरक करे लगिहैं हमार समाज के लोग उहे दिन बदलाव आयी। केहू सूनवे ना करी, केहू देखवे ना करी, तअ इ रउआ हिसाब से "चोली, लहंगा" वालन के कमाई कहाँ से होखी ? बा कि ना ?
    सामने से विरोध करे से बेहतर बा कि तरे तरे समाज के लोगन के मुंडी पलटल जाव। विरोध करे आ क़ानून बनावे से , ना तअ दहेज़ कम भईल हअ आउर ना ही बलात्कार कम भईल हअ। विरोध करे से तअ .. "जोधपुर के महाराज यशवंत सिंह के दरबार में स्वामी दयानंद सरस्वती आ नन्हीं जान" वाला कौनो घटना ना घट जावो। हम डरावत नइखीं राउर मिसन (मिशन) के। राउर इतिहास सुन के हम्रो एगो इतिहास इयाद आ गईल हअ तअ बक देनी हअ। :)
    वइसे तअ भाषा कबहुँ प्रदूषित ना हो सकअ तिया, हाँ, उ समय समय पर बदलत जरूर रहल हिअ। आगे भी बदली आ .. दोसर मौसी, मामी, फुआ के आपन गलो लगईबो करी। बा कि ना ? प्रदूषण तअ आदमी के (दोगलन सभे के) दिमाग में घुसल बा।
    एगो राउर बात आउर हमार मोट दिमाग में घुसल हअ कि सभे लोगन परिवार के साथे बईठ के आजकल के भोजपुरी सिनेमा ना देख सकेलन, बात राउर सही बा। पर आज तअ परिवार के संगे बईठ के लोग टी वी पर अइसन अइसन प्रोडक्ट के परचार (विज्ञापन) देखत बाड़े कि जेकरा छोटहन बुतरूअन सभे के ना देखहे के चाहीं ...
    विरोध से बेहतर बा कि सभे लोगन के हमनी सभे मिल के विवेक जगावल जाव .. बस एही लेखा ... (बस यूँ ही ...)...

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    1. जेतना सबूर से रउआ हमरा इ पोस्ट के निहरनी ह औरी एक-एक बात के एकदम बारीकी से बुझ के ठहाका से जवाब पटकले बानी, उ देख सुन के हमार मन जे बा से कि एकदम गच्च हो गइल बा। राउर एक-एक बात एक लाख के बा आ हम आपन माथा नेहुरा के रऊआ के सलाम ठोक तानी।हमनी सभे मिल के विवेके जगावला में फ़ायदा लउकता।

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  7. व‍िश्‍वमोहन जी, सादर प्रणाम। पूरी पोस्‍ट और उस पर भोजपुरी में कमेंट पढ़कर बहुत बहुत ही अच्‍छा लगा....अपनी संस्कृति में भावाभ‍िव्‍यक्‍त‍ि सबसे अच्‍छी होती है, क्षेत्रीय भाषा कोई भी हो इसके व‍िकास का दाय‍ित्‍व तो हमें स्‍वयं लेना ही होगा। हम भी ब्रजभाषा में थोड़ा सा प्रयास कर रहे हैं। एक संकल्‍प याद द‍िलाने के ल‍िए धन्‍यवाद।

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    1. ब्रज भाषा में आपके द्वारा किए जा रहे प्रयास के लिए आपका साधुवाद। हमें मागधी और अर्धमागधी परिवारसहित अन्य सभी भाषाओं को इस विकार से उबारने का प्रयास एक साथ मिलकर करना चाहिए। हमारा जो भी अपेक्षित सहयोग होगा उसे आपको देने को हम अहर्निश तत्पर हैं। बहुत आभार आपका!

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  8. https://drive.google.com/file/d/1Y2HK19_OoLKFzwpz2LGmA1ffkQmydwUG/view?usp=drivesdk
    आपके इस सुंदर गीत को मैंने स्वर देने की कोशिश की है

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    1. मैना करेली निहोरा अपना तोता से,///////
      प्रिय रश्मि जी, आपके स्वर में इस गीत को सुनकर मुग्ध हूं। गीत के भाव मेरे लिए ज़्यादा स्पष्ट नहीं पर आपके गायन ने इस गीत की भावाभिव्यक्ति में चार चांद लगा दिए हैं। रात से इसे कई बार सुन चुकी हूं। आंचलिकता और माटी की सुगंध लिए इस स्वर माधुर्य का कोई जवाब नहीं। मां सरस्वती की कृपा आपके कोकिल कंठ पर सदैव बनी रहे यही दुआ करतीं हूं । ❤️🌷❤️❤️🌷🙏

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    2. प्रिय रेणु जी, मेरी कोशिश को सराहने के लिए धन्यवाद और आभार।🙏
      विश्वमोहन जी से अनुरोध कर सकती हूँ कि इस गीत के कुछ keywords का अनुवाद कर दें, ताकि सभी इस गीत का आनंद उठा सकें।




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    3. तोता-मैना की कहानी, कोयल की ज़ुबानी!
      अत्यंत आभार इस सुमधुर प्रयास का।

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  9. खुब नीमन लिखले बानी । मन गदगदा गइल ।

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  10. भोजपुरी दिवस पर वीडियो में भोजपुरी भाषा एवं संस्कृति पर गहन विश्लेषण बहुत सुन्दर एवं ज्ञानवर्धक है ।भोजपुरी अपने आप में बहुत सुन्दर एवं समृद्ध भाषा है हाँ कुछ फिल्मी डायलॉग एवं गानों में भोजपुरी में अश्लील संवाद हैं लेकिन वह फिल्म की अश्लीलता है किसी भाषा विशेष की नहीं ।यह भी सही है कि बच्चे फिल्मों से प्रेरित होकर उन शब्दों को ग्रहण करते हैं...पर यह किसी भी भाषा के साथ हो सकता है। या हो रहा है। इससे भाषा दूषित नहीं हो सकती देश की संस्कृति एवं भाषाओं का विकास होना ही चाहिए संस्कृति से ही संस्कार हैं...
    बहुत सुन्दर भोजपुरी गीत एवं प्रासंगिक लेख।

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    1. जी, बिलकुल सही कहा आपने। किंतु हमारा यह पुनीत कर्तव्य है कि अपनी भावी पीढ़ियों के हाथ में हम अपनी भाषा के विकृत और कुरूप स्वरूप को न सौंपे। अत्यंत आभार आपका।

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  11. कई बार एक दौर आता है जिस पर रोक मुश्किल लगती है पर फिर प्रवाह जब करवट लेता है रूप बदल जाता है ... कई भाषाओं में ऐसा होता रहा है ... आपकी आंचलिक भाषा की याचना बेहद कमाल है ... बहुत शुभकामनाएं ...

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    1. बस प्रवाह की वही करवट हमारी ओर आशा भारी दृष्टि से देख रही है।

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  12. बहुत ही सार्थक विषय पर आपकी सुंदर परिचर्चा देखी सुनी, बहुत ही सराहनीय पहल है,किसी को भी एक सुंदर संस्कृति को गंदा करने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए,ज़रूर आंदोलन करना चाहिए,बटोहिया गीत ने तो मन मोह लिया,आपका गीत भी बहुत हाई सुंदर आंचलिक भाषा का द्योतक है,आपके संस्कृति और सभ्यता के लिए किए जाने वाले कार्य बड़े हाई प्रेरक हैं, आपको बहुत शुभकामनाएँ और नमन आदरणीय विश्वमोहन जी......
    इन्हीं संदर्भो को ध्यान रखकर मैंने अवधी गीतों का अपना ब्लॉग प्रारम्भ किया था,जिसमें मैं स्वरचित तथा कुछ पुराने गीतों को भी डालने की कोशिश करती हूँ, और आप जैसे विद्वतजन प्रेरणास्वरूप दो शब्द लिखते हैं,तो बड़ा हर्ष होता है,और प्रेरणा मिलती है,आशा है,आगे भी आप सबसे प्रेरणा मिलेगी...आपको मेरा नमन।

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    1. बहुत सुंदर। स्वस्थ और सरस अवधी गीतों का सृजन यज्ञ आप अनवरत जारी रखें। हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!!!

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  13. सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से
    मोरे प्राण बसे हिम-खोह रे बटोहिया |
    एक द्वार घेरे रामा हिम-कोतवलवा से
    तीन द्वार सिंधु घहरावे रे बटोहिया||एक अविस्मरणीय प्रस्तुति आदरणीय विश्वमोहन जी। सबसे पहले आदरणीय रघुवीर नारायण जी द्वारा रचित रचना" बटोहिया ,"के  सुमधुर वाचन के लिए कोटि आभार!!  रघुवीर नारायण जी की पुण्य स्मृति को सादर नमन, जिन्होंने '' बटोहिया  ;; के रूप में  सदी का   बेमिसाल सृजन किया ! ।    जिसे गाँधीजी के शब्दों में -- '' भोजपुरी वन्दे मातरम ''   कहा गया | एक सार्थक विमर्श सोचने पर मजबूर करता है। सच है फ़िल्मों में  देहप्रदर्शन और द्विअर्थी संवादों पर आधारित व्यावसायीकरण की बदौलत    नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का  ह्वास हो चुका है । और ये भी कड़वा सच है बिहार ओर हरियाणा को वेदभूमि होने का गौरव प्राप्त है जहां उच्च संस्कारों की दीर्घ परंपरा रही है।  अर्थोपार्जन की तीव्र लालसा वाले फ़िल्म निर्माताओं  ने इन दोनों राज्यों का नाम अश्लीलता से जोड़कर इनकी गरिमा को ठेस पहुंचाई है। जैसा कि मैंने वीडियो में सुना स्तरीय फिल्में आज भी मील का पत्थर हैं  साथ में  सामाजिकता और सांस्कृतिकता में बेजोड़ हैं। भोजपुरी का  मुझे ज्यादा नहीं पता पर हरियाणा में भी, हरियाणवी में शुरुआत में  बहुत शानदार फिल्में बनीं हैं। "चंद्रावल"  हरियाणा की पहली   साफ़ -सुथरी बेमिसाल फिल्म रही जिसने हरियाणवी सिनेमा को घर -घर तक  पहुँचाया |उसका जादू कोई दूसरी फिल्म ना दोहरा सकी | आपने  चिंतन में  फिल्मों का जिक्र किया लेकिन  एक चीज को अनदेखा किया जिसका उल्लेख करना चाहूँगी |फिल्मों से  कहीं घातक और  शालीनता को दरनिकार कर रहे छोटे  वीडियो और एल्बम हैं  जिन्हें आज यू tube जैसे मंच  पर   देखना और पाना मुश्किल  नहीं |   जो संस्कृति  और नैतिकता की नसों में  मीठा जहर बनकर  उसकी घुले जा रहे हैं |  चकोर संस्था ने सोशल मीडिया पर कुछ भी पल भर में  वायरल हो जाने के युग में  यदि इन  मनमानियों के खिलाफ ध्वजा उठायी है तो निसंदेह वह सराहना और साधुवाद की पात्र है |खेद है की मुझे भोजपुरी सिनेमा के बारे में ज्यादा नहीं पता  पर हिंदी फिल्मों में'' नदिया के पार'','' गंगा जमुना [ सिर्फ सुनी है देखी नहीं ] के साथ'' तीसरी कसम ''   भोजपुरी संस्कृति और  सभ्यता का उत्कृष्ट उदाहरण  है जो  बिहार  के उदार देहाती परिवेश के  मधुर  चित्र प्रस्तुत करती हैं |  पर नये सिनेमा में प्रायः  हर कहीं अतिवाद है  चाहे वह किसी भाषा या  प्रांत का हो |  एक सार्थक  चर्चा और बहुर ही प्रभावी प्रस्तुतिकरण के लिए आपको हार्दिक आभार  और शुभकामनाएं|

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    1. जी, आपकी इस विस्तृत और विद्वतपूर्ण टिप्पणी का सादर आभार।

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  14. और काव्य रचना और सुबोध जी सहित अन्य पाठकों की भोजपुरिया टिप्पणियाँ कुछ समझ में आई कुछ नहीं पर ब्लॉग पर आंचलिकता का समां बंध गया है जो निसंदेह बहुत मनभावन है |पुनः आभार |

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  15. निहोरा - याचना, आग्रह। तिरिया - पत्नी। बर बथान - घर के बाहर का द्वार या दुअरा जहां गाय बैल रहते हैं। पेड़ा जोहत, असरा देखी - प्रतीक्षा रत। हर - हल। कुदार - कुदाल। मंगिया - मांग (सिर पर)। डेरवा - डेरा, घर, घोंसला।

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  16. आपके विचार यथार्थपरक एवं स्तुत्य हैं विश्वमोहन जी। इस दिशा में सुनने एवं पढ़ने वाले प्रबुद्ध लोगों को ही प्रयास करने होंगे जिससे भाषा निर्मल रहे तथा उसकी छवि न बिगड़े। और जो भोजपुरी गीत आपने प्रस्तुत किया है, उसका रसास्वादन वर्णनातीत है।

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    1. जी, आपके आशीष का अत्यंत आभार।

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  17. बहुत सुंदर सृजन

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