Saturday 28 May 2016

बैक-वाटर

           (१)

अल्हड़, नवयौवना नदी
फेंक दी गयी! या कूदी।
पिता पहाड़ की गोदी से,
सरकती, सरपट कलकल
छलछल, छैला समंदर
 की ओर।
पथ पर पसरा पथार,
खाती, पचाती,
घुलाती मिलाती।
ऊसर अंचल थाती
आँचल फैलाती।
कूल संकुल मूल,
नमी का बीज बोती
संगी साथी सबको धोती।
स्वयं पापो की गठरी ढोती!

         (२)

गाँव- गँवई,शहर नगर
ज़िंदा-मुर्दा, लाश,ज़हर
टूटे फूटे गन्दे नालों
का काला पानी,
सल्फर सायनाइड की बिरयानी।
सबकुछ चबाती चीखती।
प्रदुषण के नए भेद सीखती,
हहकारती, कुलबुलाती,
पसरती, सूखती
जवानी लुटाती!
कभी नहरें पी जाती
फिर निगोड़ा सूरज
सोखने लगता।
दौड़ती, गिरती पड़ती
अपने समंदर से मिलती।

          (३)

समंदर!
उसे बाँहों में भरता।
लोट लोट मरता।
लहरों से सजाता।
सांय सांय की शहनाई बजाता
अधरों को अघाता
और रग रग पीता।
फिर दुत्कार देता
वापस ‘ बैक-वाटर’ में।
जैसे, राम की सीता!
वेदना से सिहरती
बेजान, परित्यक्ता
आँसुओं में धोती, पतिता।
सरिता, यादों को
अपने पहाड़ से पिता की!

22 comments:

  1. NITU THAKUR's profile photo
    NITU THAKUR
    Owner
    +1
    बहुत सुंदर रचना बधाई स्वीकार करें
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    Dec 14, 2017
    Indira Gupta's profile photo
    Indira Gupta
    +1
    वाह क्या खूब ....
    आपका लेखन सदैव हृदय ग्राह्य और विवेचना को उकसाता हुआ होता है .कलम स्वयं चल पढ़ती है ....प्रतिक्रिया के लिये !
    बेहतरीन और रुक कर सोचने के लिये बाध्य करता लेखन ! 🙏
    हर युग दोहराता यहीं कहानी
    अग्नि परीक्षा महज दिखवा
    पुरुष करे सदा मन मानी
    भरी सभा हो या हो जँगल
    परित्यक्ता या अपमान जरूरी
    झूटे दंभ को पोषित करना
    बस ये ही काम जरूरी !
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    Dec 15, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +2
    +Nitu Thakur आभार!!!!
    Dec 15, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Indira Gupta आपकी विवेचना भी कम उकसाउ नहीं है! आभार!!!

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  2. बहुत ही सुन्दर विश्वमोहन जी !
    नदी की मर्मान्तक पीड़ा, उसका ठुकराया जाना, उसका दोहन और अंत में उसका उपभोग कर उसका परित्याग - हर परित्यक्ता, हर शोषिता, हर अभागन की, आप-बीती है.

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  3. आपकी लिखी रचना मंगलवार 16 मई 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. मर्म को छूता सराहनीय सृजन।
    सादर

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  5. बहुत सुन्दर रचना

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    1. जी, अत्यंत आभार। अपना नाम भी लिखते तो और अच्छा लगता😄🙏

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  6. वाह..बहुत सुंदर बिंबों से सजी सराहनीय कृति।

    सादर।

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  7. जीवंत चित्रण ... भावधारा में बाँधती हुई।

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  8. समंदर!
    उसे बाँहों में भरता।
    लोट लोट मरता।
    लहरों से सजाता।
    सांय सांय की शहनाई बजाता
    अधरों को अघाता
    और रग रग पीता।
    फिर दुत्कार देता
    वापस ‘ बैक-वाटर’ में।
    नदी और नारी की तुलना समन्दर की परित्यक्ता नदी का बैक वाटर में बदलना! राम की सीता ...परित्यक्ता की वेदना !
    वाकई समीक्षा एवं सराहना से परे बहुत ही लाजवाब एवं अद्भुत।
    🙏🙏🙏🙏

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    1. जी, बहुत आभार आपके सुंदर शब्दों का।

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  9. एक नदी के मानवीकरण के माध्यम से नारी मन की व्यथा का सटीक चित्रण।निसन्देह नदिया और नारी एक सी,कहीं जन्मती हैं और कहीं मिल जाती है।एक भावपूर्ण रचना जिसे जितनी बार पढ़ो नई-सी लगती है।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय विश्वमोहन जी 🙏🙏

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    1. जी, अत्यंत आभार आपके आशीष का!!!

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  10. आदरणीय विश्वमोहनजी,
    नदी की इसी हालत को देखकर मैंने एक कविता लिखी थी - मेरे स्नेही सागर।
    कविता मेरे ब्लॉग पर है। परंतु आपकी यह कविता नदी की व्यथा को जिस मार्मिक ढंग से व्यक्त करती है, वह हृदय को कचोटता है और प्रश्न उठता है कि नदी की इस दशा के लिए कौन जिम्मेदार है , पहाड़ जिसने उसे जन्म देकर अकेला छोड़ दिया, मानव जिसने उसके मातृत्व का केवल शोषण किया अथवा समंदर जिसने उसे बैकवाटर बनाकर दुत्कार दिया ? यही तीनों प्रश्न एक शोषित पीड़ित स्त्री का संदर्भ भी दे सकते हैं। जिम्मेदार कौन ? जनक/जननी या समाज, या पति/प्रियतम ????

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    1. "सुनो प्रियतम,
      तुमसे मिलकर बाँध टूटा,
      बहे झरझर अश्रू के निर्झर !
      शायद इसीलिए खारे हुए तुम !
      खारेपन की, आँसुओं की
      सौगात भी सहेज ली ?

      मेरे स्नेही सागर !
      मैं तो दौड़ी आती हूँ
      सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए !"
      लाजवाब अभिव्यक्ति है व्यथा की, नदी की - ' मेरे स्नेही सागर में'!!
      जी, अत्यंत आभार।

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