Sunday, 15 May 2022

तुभ्यमेव समर्पयामि

ख्वाहिशों का घर गिरा हो,

घोर निराशा तम घिरा हो।

तो न जीवन को जला तू,

खोल अंतस अर्गला तू।


मन  प्रांगण में बसे हैं,

जीवन ज्योति धाम ये।

तिमिर से बाहर निकल,

आशा का दामन थाम ले।


ले वसंत का अज्य तू और,

ग्रीष्म की हो सत समिधा।

हव्य समर्पण हो शिशिर का,

पुरुष सूक्त की यज्ञ विधा।


सृष्टि के आदि पुरुष का,

दिव्य भाव मन अवतरण।

हो प्रकृति के तंतुओं का,

कण -कण सम्यक वरण।


अणु प्रति के परम अणु,

सौंदर्य दिव्य विस्तार हैं।

सृष्टि है एक पाद सीमित,

तीन अनंत अपार हैं।


उस अनंत में घोलो मन को

त्राण तृष्णा से तू पा लो।

 ' तुभ्यमेव समर्पयामि '

कातर कृष्णा-सा तू गा लो।


32 comments:

  1. बहुत सुन्दर ! तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ---

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  2. Vishwamohan Kumar15 May 2022 at 10:49

    मैं तुझसे...तुझको मेरा अर्पण❤️

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    1. जी, अत्यंत आभार। मेरे समर्पण भाव के प्रसाद रूप में अवतरित हुए मेरे हमनाम और हमनवां का हार्दिक स्वागत🙏🙏🙏

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 16 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  4. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 16 मई 2022 को 'बुद्धम् शरणम् आइए, पकड़ बुद्धि की डोर' (चर्चा अंक 4432) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  5. मननपूर्ण रचना ।
    हे अनंत हे दिगदिगंत सर्वस्व समर्पण है तुमको ।
    ये मेरे भावों की माला निश दिन प्रतिपल अर्पण तुमको ।।

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    1. बहुत सुंदर। अत्यंत आभार।

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  6. आध्यात्मिक जीवन की ओर इशारा करती.. शब्द शब्द अंतस भावों को उकेरती सुंदर रचना।
    शुभकामनाएँ

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  7. घोर निराशा में आशा का संचार करती बेहतरीन रचना ।

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  8. ईश्‍वर को समर्पित , आध्‍यात्‍म का सुख देती रचना ...वाह विश्‍वमोहन जी...मन को छू गई पूरी की पूरी रचना कोश में रख रही हूं...अणु प्रति के परम अणु,

    सौंदर्य दिव्य विस्तार हैं।

    सृष्टि है एक पाद सीमित,

    तीन अनंत अपार हैं।...बहुत सुंदर

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  9. ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। हरि: ॐ

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    1. भुंजीथा:, मा गृध:!!! जी, अत्यंत आभार!!!

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  10. प्रकृति से जन्मा मानव अंत में अंशरूप में उसी में विलीन हो जाता है।सो,जीवन में समस्त पीड़ाओं से त्राण पाने हेतु 'तुभ्यमेव समर्पयामि'- सा विराट विचार बहुत बड़ा संबल प्रदान करता है।एक अनुपम सन्देशपरक रचना,जिसमें वैराग्योन्मुखी हृदय का सूक्ष्म आह्वान है।सादर 🙏🙏

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  11. वाह! बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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  12. मन प्रांगण में बसे हैं,

    जीवन ज्योति धाम ये।

    तिमिर से बाहर निकल,

    आशा का दामन थाम ले।

    आशा का दामन थाम खुद को सम्हालना तो फिर भी आसान है मगर.. पूर्ण समर्पण थोड़ा मुश्किल...
    हमेशा की तरह लाजबाव सृजन,सादर नमस्कार आपको 🙏

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  13. जीव जन्म विलय प्रकृति यह जीवनचक्र है
    भंगुरता का शाश्वत गान सुनो भावनाएँ अक्र है।

    -----///----
    समृद्ध शब्दावलियों से अलंकृत, अत्यंत विराट भाव लिए बेहद सारगर्भित जीवन दर्शन का प्रशंसनीय गान।

    प्रणाम
    सादर।

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  14. त्वदीयं वस्तु गोविन्द ,तुभ्यमेव समर्पये.
    और है क्या संसार में?!
    सुंदर अभिव्यक्ति।

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  15. बहुत बहुत सुन्दर

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