Saturday, 7 May 2022

हँसना है मजबूरी।

सच कहते हो, मैं हँसता हूँ ,

हँसना  है  मजबूरी।

धुक-धुक दिल की मेरी सुध लो,

इसकी साध अधूरी।


नहीं गोद अब इसे मयस्सर,

जिसमें यह खो जाए!

आँचल उसका  गीला  कर दे, 

मन भर यह रो जाए।


सुबक-सुबक कर जी भर  बातें, 

दिल में उसके बोले ।

हर सिसकी पर उर में उसके, 

भाव भूचाल-सा डोले।


फिर क्रोड़ से करुणा की, 

भागीरथी भर आए।

मन के कोने-कोने को, 

शीतल तर  कर  जाए।


बस मन रखने को मेरा, 

चाँद पकड़ वह  लाए।

उसकी  दूधिया चाँदनी में,

सूरज को नहलाए।


ग्रह-नक्षत्र, पर्वत, नदियाँ, 

चिड़िया, परियों की रानी।

दुलराए और मुझे सुनाए, 

‘माँ, कह एक कहानी’।


मंद-मंद मुन्ने की मुस्की,

माँ का मन अघाए।

पुलकित संपुट के प्रसार में, 

सभी कला छितराए।


अब चंदोवा-सी उस गोदी से ,

दीर्घ काल की दूरी।

छिन  गयी गोदी, अब क्यों रोना?

हँसना  है  मजबूरी!


32 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-5-22) को "पोषित करती मां संस्कार"(चर्चा अंक-4423) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. उत्कृष्ट भाव संयोजन !!

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  3. ये कमी तो रहेगी ! इसलिये आंसुओं को मुस्कुराहट के पीछे छुपा लेना होता है।आप की रचना पढ़ कर आंसू कहीं बग़ावत न कर बैठें !

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  4. सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना रविवार ८ मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  6. माँ से है सारा संसार, कोई करे न माँ जैसा प्यार ।

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  7. अब चंदोवा-सी उस गोदी से ,

    दीर्घ काल की दूरी।

    छिन गयी गोदी, अब क्यों रोना?

    हँसना है मजबूरी!

    माँ के सिवाय कौन है आँसू पौंछने वाला दुनिया में...
    दिल को छूकर आँखे नम करती बहुत ही भावपूर्ण रचना ।

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  8. भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  9. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।
    सादर

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  10. मां के प्रति निर्मल विहवल भावों का सुंदर प्रवाह । उत्कृष्ट रचना के लिए हार्दिक बधाई।

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  11. डॉ विभा नायक8 May 2022 at 21:11

    वाह कितनी मोहक लय। मनोरम कविता

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  12. अब चंदोवा-सी उस गोदी से //
    दीर्घ काल की दूरी//
    छिन गयी गोदी, अब क्यों रोना//
    सना है मजबूरी!

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  13. अब चंदोवा-सी उस गोदी से ,/दीर्घ काल की दूरी।छिन गयी गोदी, अब क्यों रोना?/हँसना है मजबूरी!/
    आदरणीय विश्व मोहन जी,माँ के साथ इन्सान का बचपन,परिकथाएँ ,वात्सल्य भरी मनुहार और दुलार सब विदा हो जाता है।फिर हँसना मात्र मजबूरी ही तो रह जाता है।आँचल की छाँव तले संजोये सपनों की उस जादुई संसार का कोई सानी नहीं है।मातृविहीन हृदय का बहुत ही मार्मिक और भावभीना एकाकी प्रलाप,जो हृदय को विदीर्ण कर गया।सादर 🙏🙏





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  14. बेहद भावपूर्ण प्रस्तुति

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  15. बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना

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  16. बस मन रखने को मेरा,

    चाँद पकड़ वह लाए।

    उसकी दूधिया चाँदनी में,

    सूरज को नहलाए।
    ------------------
    बहुत खूब।
    सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ और बधाईयाँ।

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  17. वाह .... बचपन में लौटा दिया आपने ... माँ के करीब बिताये दिन याद आ गए ...

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  18. जी, अत्यंत आभार!!!

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  19. बहुत सुंदर 🙏💕

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