पहूंचे रूडकी के प्रांगण में
जैसे जीवन के सावन में.
खुशियों के बादल छा
जाये
मन मयूरी मधु रास रचाये.
सहपाठी मिले मनभावन
चुप चुप लौटा चपल बालपन.
वर्ष पच्चीस गत, हुए हम दीक्षित
सृजन के श्रृंगार में शिक्षित.
नयी प्रेरणा से दीपित
मन
नये
सपनों से हर्षित लोचन.
रजत काल में ऊर्जस्वित तन
चुप चुप लौटा चपल बालपन .
वसुधा के हर खंड से आकर
मिले हृदय में हृदय समाकर.
तन पुलकित है मन पुलकित है
मिलन राग से नभ गुंजित है.
और स्वरित है उर में धडकन
चुप चुप लौटा चपल बालपन .
दीक्षांत में विदा जो होकर
आईआईटी में उतर आज आये.
पंचविश के काल खंड का
अतिक्रमण कर के हैं आये.
भरे अंजुली में ज्ञान वो पावन
चुप चुप लौटा चपल बालपन.
जग में जहां जहां भी जाते
रूडकी के कुल गीत सुनाते.
" सृजन हित जीवन नित
अर्पित
धरा स्वर्ग शोभा कर निर्मित "
श्रमं बिना न किमपि साध्यम
चुप चुप लौटा चपल बालपन .
"काटले", 'गंगा' कलकल छलछल
'गोविंद' की बंशी धुन निश्छल.
सुर-संगीत 'रवींद्र' मिलाकर
कोकील कंठ 'सरोजिनी' पाकर.
रचा ज्ञान का स्वर सप्तक जो
मधुर ताल मिलन मनभावन.
चुप चुप लौटा चपल बालपन .
रजत मिलन, की विरह वेला ने
शाश्वत सत्य को उकेरा है.
बिछुडन है फिर मृदु मिलन है
है संझा, फिर सवेरा है.
चिंतन-चिन्मय ‘चरैवति’ का,
अक्षत आर्य जीवन दर्शन है.
रजत विरह के बाद शेष भी
रूबी कोरल के मंगल क्षण हैं.
स्वर्ण मिलन का नवयौवन है
फिर हीरक का चिरयौवन है.
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विश्वमोहन