धरती की तपती
छाती पर,
रिमझिम बूँदों का टप-टप पड़ना।
सूखी-भूखी भुरभुर माटी,
सोंधी-सोंधी छौंक का उड़ना।
उमसे-गुमसे गगन में बादल,
मचल-मचल गर्जन करते हैं।
अंजुली-भर जलकण भर कर,
वसुधा पर नर्तन करते हैं।
नव ऋतु की इस सृजन वेला में,
प्रेयसी, छेड़ें आओ तान।
सस्वर स्वागत करो ये सजनी,
आश्विन का है नया विहान।
नव श्रृंगार मधु मौसम में,
ली नवचेतन ने अंगड़ाई।
प्रकृति के नव प्रभात में,
शिशिर की सुरीली शहनाई।
शनैः शनैः अब शीत शशक का,
अम्बर में उल्लास मनाना।
सूने फैले नीलांचल में,
भगजोगनी संग रास रचाना।
तारक सज्जित रजत पटल पर,
चंदा का मंद-मंद मुस्काना।
पवन प्रकम्पित पत्रदलों पर,
शबनम का अब लूटे खजाना।
पूनम के इस प्रेम प्रहर में,
सजनी, प्रीत के गीत
सुनाना।
कल बीत जाना, फिर कल आना,
सृष्टि का ये चलन पुराना।
तपना, भींगना और ठिठुरना,
मौसम का ये ताना-बाना।
जीवन चक्र ऐसे ही चलता,
उद्भव, पलना और गुजरना।
हिम तरल बन वाष्प में परिणत,
फिर तुषार का वापस पड़ना।
जगत मिथ्या, ब्रह्म्-सत्यम दर्शन,
चिन्मय चिंतन चिरंतन चरना।
नैसर्गिक पावन उपवन में,
विश्वमोहिनी, हरदम हँसना।
मेरे हमदम हरदम हँसना,
विश्वमोहिनी, हरदम हँसना।
----- विश्वमोहन
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ReplyDeleteMakhna
+1
👌👌
Nov 19, 2017
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Vishwa Mohan
+1
+Makhan Singa आभार!!!
Nov 19, 2017
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Makhna
+1
भाषा की ऐसी सुंदर शुद्धि आधुनिक कवियों में कम ही मिलती है। ऐसा लगा जैसे गुप्त जी की कोई रचना है। अति सुंदर। 🙏
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Nov 19, 2017
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Roli Abhilasha (अभिलाषा)
+2
आपके मनभावन शब्दों का हमारे अधरों से लिपट-लिपट जाना।
बहुत खूब।
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Nov 20, 2017
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Vishwa Mohan
+Makhan Singa आपने तो भावाभिभूत कर दिया! आभार!
Nov 20, 2017
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Vishwa Mohan
+1
+#Ye Mohabbatein वाह! क्या बात है! मनभावन आशीर्वचन! अत्यंत आभार आपका!!
Nov 20, 2017
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Roli Abhilasha (अभिलाषा)
+1
+Vishwa Mohan बस हम सबका स्नेह बरकरार रहे।
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ReplyDeleteRenu
+1
सृजन की ये अद्भुत बेला
चले सृष्टि के रास का खेला ;
बरसे अम्बर झूमे धरती
तन --मन में बूंद - बूंद रस भरती
हरित वसन में सजा है कण कण
संतप्त हृदय को शीतल करती
खग दल ने अम्बर चूम लिया
लगा रहे कलरव का मेला
सृजन की ये अद्भुत बेला !!
आदरणीय विश्वमोहन जी -------- आपकी रचना पहले भी पढ़ी है पर हर बार इसमें नया दर्शन पाती हूँ -------------- बहुत सुंदर ,सौंधी रचना ---
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Nov 19, 2017
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Vishwa Mohan
+1
+Renu
आभार!!!