Wednesday 12 April 2017

अर्पण

संग संग रंग मेरे मन का,
तनिक सा तुम भी भर लो ना//
भले ' भले' हो तुम तनहा में,
यादों में निमिष ठहर लो ना//

मन की महकी गलियों में,
बस दो पल हमें भी घर दो ना//
लो चंद मोती मेरी पलकों के,
मुस्कान अधर में भर लो ना//

मन उच्छल प्रिय हलचल पल पल,
तल विकल लहर ज्यों मचल मचल//
हिय गह्वर भर भाव भंवर,
आकुल नयन घन आर्द्र तरल//

अवसाद हर्ष के पार प्रिये,
पथ पावन तू मैं, पथिक सरल//
निःशब्द, मौन मैं स्थावर,
रहूं राह निहारे, अनथक अविरल//

हे हृदय हारिणी हंसिनी,
तू रासे विलास, हँसे मुक्त दंत//
गूंजे स्वर-अर्चन दिग दिगंत,
कण कण अर्पण हे पथ अनंत//

3 comments:

  1. Kusum Kothari: बहुत सुंदर रचना अप्रतिम अभिराम।
    Vishwa Mohan: आभार सादर!!!

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  2. Srishti Tripathi: बेहतरीन रचना.... 👌👌
    Vishwa Mohan: आभार!!!

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  3. Meena Gulyani: beautiful post
    Vishwa Mohan: आभार!!!

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