दुःख की कजरी बदरी करती ,
मन अम्बर को काला .
क्रूर काल ने मन में तेरे ,
गरल पीर का डाला .
ढलका सजनी, ले प्याला ,
वो तिक्त हलाहल हाला//
मुख शुद्धि करूं ,तप्त तरल
गटक गला नहलाऊं ,
पीकर सारा दर्द तुम्हारा ,
नीलकंठ बन जाऊं .
खोलूं जटा से चंदा को,
पूनम से रास रचाऊं //
चटक चाँदनी की चमचम
चन्दन का लेप लगाऊं ,
हर लूँ हर व्यथा थारी
मन प्रांतर सहलाऊं .
आ पथिक, पथ में पग पग
सपनों के साज सजाऊं //
मन अम्बर को काला .
क्रूर काल ने मन में तेरे ,
गरल पीर का डाला .
ढलका सजनी, ले प्याला ,
वो तिक्त हलाहल हाला//
मुख शुद्धि करूं ,तप्त तरल
गटक गला नहलाऊं ,
पीकर सारा दर्द तुम्हारा ,
नीलकंठ बन जाऊं .
खोलूं जटा से चंदा को,
पूनम से रास रचाऊं //
चटक चाँदनी की चमचम
चन्दन का लेप लगाऊं ,
हर लूँ हर व्यथा थारी
मन प्रांतर सहलाऊं .
आ पथिक, पथ में पग पग
सपनों के साज सजाऊं //