मैं
आई.सी.सी. के समक्ष लज्जावत सर झुकाए खड़ा था. मुझ पर 'वर्क-प्लेस पर वीमेन के
सम्मान को आउटरेज' करने का इलज़ाम था. यह आरोप मेरे लिए बिलकुल अप्रत्याशित था.मेरी
शुचिता और मेरे निर्मल चरित्र का सर्वत्र डंका बजता था. स्वयं आई.सी.सी. के सदस्य
हैरान थे. लोगों की अपार भीड़ भी आहत मुद्रा में बाहर खड़ी थी. मुझे तो काठ मार गया
था . अभियोग की बात तो दूर, अभियोग लगाने वाली माननीय महिला को मैं पहचानता तक
नहीं था. उन्हें भी पहली बार ही देख रहा था. मैंने अपनी नीची पलकों में कातर सलज्ज
निगाहों से उनकी आँखों में झांका मानो मेरी रूह उनके रूह से पूछ रही ही,
"क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं करोगी."
पता
नहीं. कोई ईश्वरीय चमत्कार हुआ. उसने बयान दिया, यह आरोप मैंने 'मैडम' के इशारे पर
लगाया है. अब मामला बिलकुल साफ़ था.
'मैडम'
मेरी प्रिय सहकर्मी थी. साहित्य कला और संस्कृति पर उनके अद्भुत व्याख्यान के शब्द-शब्द
से सरस्वती झांकती थी. करीने से पहने उनके वस्त्र और आभूषणों में लक्ष्मी विराजती थी. उनकी रूप-सज्जा और नैन-नक्श की अपलक पलक
कलाओं में सहस्त्रों रतियाँ कंदर्प आमंत्रण का आमुख लिखती. हाँ, उनके अधरों के
विलास और नयनों की थिरकन से मेरी अन्यमनस्कता अवश्य बनी रहती.
महिला के
रहस्योद्घाटन से तो मैं हतप्रभ रह गया. भावनाओं की इस हतशून्यता में मैंने समीप ही
खड़े मैडम का हाथ पकड़ लिया और उनकी बरबस अनुराग दीप्त आँखों में आत्म-ग्लानि की लौ का
अवलोकन करने लगा. मैं सपने से जाग चुका था
और आहत मन से अपने दु:स्वप्न की कथा उन्हें सुनाने लगा. मैडम ने मेरे हाथों
को और जोर से पकड़ लिया और चहक उठी, "मैं तो बहुत आह्लादित हूँ. कम से कम कारण
जो भी हो आपके सपनों में आयी तो! मेरे लिए तो यह अद्भुत क्षण है." उनकी पकड़
मजबूत होते जा रही थी.
इधर मेरी
पत्नी जोर जोर से झकझोर कर मुझे जगा रही थी, "मुंगेरी लाल जी, उठो, उठो, मोदीजी
का बायो-मेट्रिक अटेंडेंस' तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है. आँखे मलता हुआ मैं उठा और
जल्दी से तैयार होकर दफ्तर की ओर भागा.
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