Thursday, 24 January 2019

प्रकृति का खेल

विकर्षण में होता है
अपनापन।
बढ़ जाता है
जुटना
ठेलने में एक दूसरे को।

नहीं होता डर
टूटकर
खोने का स्वत्व।
जैसे कि आकर्षण में,
खींचकर तोड़ने में।

छीन गया था स्वत्व
आपाधापी में दो पिंडो के
एक दूसरे को
अपनी ओर
खींचने में

टूट गई थी
पिंड से विलग
सघन खगोलीय राशि
बनने को धरती
पृथ्वी की।

कितनी रोई थी
पृथ्वी उस दिन।
आंसूओं का खारा जल
ठहर गया था
बन समंदर।

एक ओर
हो रहा था
तार तार
तपन तारे का।
खोकर अपना प्रकाश।

और समय की
शीत में
जमती जा रही थी
जिद जिजीविषा की
जमीन बनकर।

आने लगी थी घुमरी
और खाने लगी थी चक्कर,
चारो ओर अपने जच्चा की
गिन गिन कर
दिन,रात, महीने और साल।


दूसरी ओर फुफकार रही थी
ज्वालामुखी वेदना विरह की
दो तिहाई आंसुओं में
डूबी तरल तप्त लावा सी
बनकर आग्नेय आस्तित्व!

 खारा जल आंसूओं का,
अपने अंदर का ही,
लहरा रहा है
बनकर अब भी,
भावनाओं का समंदर।

हर बार उर के
गहवर से, गहराती।
लहरें लहराती, लपलपाती,
भागती हैं छूने।
जिजीविषा की जमीन।

फिर लगता है पीने उन्हें,
तट के जमीन का रेत।
और लौट जाती है,
उल्लसित लहरें।
लुटाकर लालसा!

सजा है वीतान,
प्रकृति के खेल का!
लहरों के लास का
समंदर के हास का
तटों के विलास का।


3 comments:

  1. Meena Gulyani's profile photo
    Meena Gulyani
    +1
    sunder
    Translate
    1w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Meena Gulyani आभार!!!
    1w
    Meena Gulyani's profile photo
    Meena Gulyani
    +1
    welcome ji
    Translate
    1w
    Indira Gupta's profile photo
    Indira Gupta
    Moderator
    +1
    अदभुत विस्मयकारी और विहंगम प्रकृति का अनुपम मानवीयकरण सा लेखन ...
    विकर्षण में होता अपना पन .....पैने द्रष्टिकोण का उदभव .....नमन नमन कविराज विश्व मोहनजी
    👍👍👍👍👍👍👍
    Translate
    1w
    Pravin Patel's profile photo
    Pravin Patel
    +1
    बहुत ही उम्दा रचना सरदय नमस्कार आदरणीय श🙏
    Translate
    1w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Indira Gupta जी अत्यंत आभार आपके अमिय आशीष का!
    1w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Meena Gulyani आभार!
    1w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Pravin Patel आभार!!!
    1w
    Pammi Singh's profile photo
    Pammi Singh
    +1
    अनमोल शब्द, भाव..
    Translate
    1w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    आभार!!!
    1w
    Meena Gulyani's profile photo
    Meena Gulyani
    welcome ji
    Translate
    1w

    Add a comment...
    2 plus ones
    2

    ReplyDelete
  2. Shubha Mehta's profile photo
    Shubha Mehta
    +1
    वाह!!बहुत खूब !! उत्पत्ति का कितना सुंदर वर्णन !!! अलग होने का दुख ..!!कितनी सरलता से पूरी कहानी ही लिख दी आपने ...सादर नमन आपकी लेखनी को 🙏
    आपका ब्लॉग मेरे कमेंट नही ले रहा है ..पता नहीं क्यों ?
    Translate
    1w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Shubha Mehta बहुत आभार आपका! आ तो गया कमेंट आपका! हो सकता है कुछ अस्थायी तकनिकी समस्याएं हो. हमें तो आपके आशीष से मतलब है जो मिल गया.
    1w
    NITU THAKUR's profile photo
    NITU THAKUR
    +1
    बहुत ही सुंदर
    Translate
    1w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    आभार हृदय से।
    1w

    Add a comment...
    2 plus ones
    2

    ReplyDelete
  3. Sudha Devrani's profile photo
    Sudha Devrani
    +1
    विज्ञान और साहित्य की मिश्रित शैली में रची बहुत ही लाजवाब एवं अद्भुत रचना....।
    अति सराहनीय एवं अविस्मरणीय सृजन के लिए अनन्त शुभकामनाएं....
    Translate
    2w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +1
    अत्यंत आभार।
    2w
    purushottam kumar sinha's profile photo
    purushottam kumar sinha
    +1
    सुंदर रचना आदरणीय विश्वमोहन जी।
    Translate
    2w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +purushottam kumar sinha अत्यंत आभार।

    ReplyDelete