(२२जनवरी २०१४ , २२वीं पूण्य-तिथि. मां को समर्पित.)
गोद में तेरी पलकें खोली
ममतामयी मधु हास ठीठोली
पल पल बन मेरी हमजोली
प्रथम प्रतिश्रुति तेरी सुरत भोली
स्वर में नाद का दिया वरदान
तेरी छाती का दुग्ध पान.
वात्सल्य-वीथि का लोरी गान
सम्प्रेषण,आहरण अक्षर ज्ञान.
तू सृजन की सूत्रधार
किसलय पल्लव की पालनहार.
निराकार ब्रह्म तुममे साकार
तेरी महिमा मां अपरम्पार.
तेरा महाप्रयाण! जब मुझे छोड़
हाय! शुष्क हुआ करुणा का क्रोड़.
तेरा अभाव, निःशब्द भाव !
शापित अलगाव? न भरे घाव!
मां, टीस मिटे न मिटती है
तू सांस सांस मे बसती है.
नम नयन न किंचित सुखते हैं
दृग-जल रोके न रुकते हैं.
आच्छादित तेरी महिमा से
चंद्र, विश्व सब तेरी गरिमा से.
ऊर्जस्वित उर की हर धड़कन
बन शोणित का तू कण-कण-कण.
बस अंतस में मेरी ज्योति
अब सपनों मे ही लोरी सुनाती.
अब भी मेरे अकेलेपन में
मुझे हंसाती, मुझे रुलाती.
फिर प्यार के पीयुष पाग में
थपक थपक कर मुझे सुलाती.
मैया तेरी मीठी यादें
खींच अतीत को सम्मुख लाती.
मां, मैं भी जब थक जाऊंगा
जितना सकना है, सक जाऊंगा.
कालदूत कर मुझे निश्चेतन
ले जायेंगे तेरे ही सदन.
भूशायी होगा तन निष्प्राण
होगा महा अग्नि स्नान.
किंतु मन फिर भी करता होगा
तेरे मातृत्व का अमर पान.
मां तुझे प्रणाम , मां तुझे प्रणाम!