कसकर कमर जीवन समर में,
हास और उल्लास भर ले .
सुन हृदय की बात, प्रियतम,
तू मेरा विश्वास कर ले.
न प्रवंचना, न मिथ्यावादन,
और न विश्वासघात रे.
कविता मेरी कवच कुंडल,
वक्र विघ्न, व्याघात से.
टूटे मन के कण कण को,
बड़े जतन से जोड़े ये.
काल दंश से आहत हिय को
और भला क्यों तोड़े ये.
शब्दों की संजीवनी सरिता,
करती है सिंचित उर को.
भावों की निर्मल जलधारा
भरती है अंतःपुर को.
छंदों के स्वच्छंद सुरों से,
व्याकुल दिल को बहलाता हूं.
रुग्ण हृदय की व्यथा को हरकर,
फिर कविता से नहलाता हूं.
थकित,भ्रमित हृदय में
जाकर,
ऊर्जा की ज्योति जलाता हूं.
‘उठो पार्थ, गांडीव सम्भालो’,
का अमृत अलख जगाता हूं.
‘अर्जुन’ संज्ञाशून्य न
होना,
‘कुरुक्षेत्र’ की धरती पर.
किंचित घुटने नहीं टेकना,
जीवन की सूखी परती पर.
सकने भर जम कर तुम लड़ना,
चाहे हो किसी की जीत.
अपने दम पर ताल ठोकना,
गाना हरदम विजय का गीत.
‘मा क्लैव्यं,’ उत्तिष्ठ परंतप
काल निशा का नाश कर ले.
सर्वानधर्मान परित्यज्य,
‘विश्वरुप’ का भाष कर ले.
मैं पुरुष हूं, तू प्रकृति है,
चिर-योग का अभ्यास कर ले.
सुन हृदय की बात, प्रियतम,
तू मेरा विश्वास कर ले.
------------------ विश्वमोहन