देखा, जो
तूने कचरो पर,
सपने
बच्चों के पलते हैं.
सीसी
बोतल की कतरन पर,
तकदीर
सलोने चलते हैं.
जब जर जर जननी छाती,
दहक दूध जम जाता है.
और उजड़ती
देख आबरू,
पल! दो
पल थम जाता है.
ढेरों पर
फेंके दोनों में,
अमरत्व
जीव का फलता है.
नयन
मटक्का शिशुओं का,
शावक
श्वान संग चलता है.
लेकर कर, कुत्तों के कौर,
दाने
अन्न के बीनता है.
भाग्यहीन
है, भरत वीर यह!
दांत, शेर
की गिनता है.
झोपड़ पट्टी
की शकुन्तला,
परित्यक्ता
सी घुटती है
थामे
पानी आँखों में,
बस सरम
पीसती, कुटती है
तोभी
बेधरमी धिक् धिक् तुम!
लाज सरम घोर
पी गए.
कविता के
चंद छंदों में,
बेसरमी
अपनी सी गए!
काली
करनी के कूड़ों को,
क्यों न
कलम से कोड़ दिया!
मरू में
क्यों! मरे मनुजों पर ही,
एटम बम न
फोड़ दिया!!!