जा पिया , तू जा समर में,
आतंकियों के गह्वर में.
प्रलय का उत्पात मचा दे.
छोड़, मेरे आंसूओं मे
क्या रखा है!
आज वतन की माटी में हैं सिरफिरे फिर उतर आये,
भारत-माता के वसन को, देख कहीं
वो कुतर न जाये.
लगे चीर में चीर इससे पहले उनको चीर दो,
छिन्नमस्तिके, रौद्र-तांडव मचा, बचा कश्मीर लो,
लगे माटी लाल, शत्रु-शोणित का
सुस्वाद चखा है.
छोड़, मेरे आसूंओं में
क्या रखा है!
आज विधना ने अचानक कौन सा है चित्र उकेरा?
जीवन-रण में काल खड्ग से टकरा गया तलवार तेरा.
समर के इस विरल पल मे गुंजे अट्टाहास तेरा,
कालजयी, पराक्रमी-परंतप, अरि-दल बने ग्रास तेरा.
टूटना पर झुक
न जाना, तू याद
कर मेरा सखा है.
छोड़, मेरे आंसूओं में
क्या रखा है!
चूड़ी-बिंदी,नथ-टीका,पायल का श्रृंगार मेरा.
कुमकुम, सुहाग सिंदुर से
सुसज्जित सात फेरा,
और,जीतिया, तीज, करवा-चौथ का
त्योहार मेरा,
मातृभूमि की वेदि पर, आज मांगे दान तेरा.
अरिहंते, विजय-मन्नत का
मैंनें उपवास रखा है,
छोड़, मेरे आंसूओं में
क्या रखा है!
जा पिया , तू जा समर में,
संतति ये रक्तबीज के,
काल-चंडी को नचा दे.
छोड़, मेरे आंसूओं मे
क्या रखा है!
----------- विश्वमोहन