तहलके से सरीसृप-सा-सरकता सन्नाटा
सन्नाटे में सिमटा बेशर्म हबस का तहलका.
लकवाग्रस्त, रुग्ण, बीमार पत्रकार- धर्म
पर छाया धृतराष्ट्र की आंखों का धुंधलका.
बेहयायी के बुत बने कलम के सिपाही
झरती उनकी निर्झरिणी से पाप की काली स्याही.
पापी, पाखंडी पहने युधिष्ठिर का मुखौटा
धारे कर में कुकर्मों का कजरौटा.
करे अपनी ही तनुजा की इज्जत तार तार
धिक धिक , अधम, निकृष्ट, पतित पीत पत्रकार.
जो करे कल तक जागृति की जय जय कार
हुए मौन श्मशानसेवी, समर्पित सम्वादकार.
आलोचना के 'दीपक' की लौ नहीं धधकी
और बौद्धिकता की 'बरखा' भी नही बरखी.
ओज से लबरेज जो ललकार गुंजती थी कल तक
सिल गये होठ !
हया की एक हाय भी न हकलाये 'आज तक'.
भारतेंदु, मुल्कराज और प्रेमचंद के रचे प्रतिमान
लेखन सह पथ प्रदर्शन के उदात्त आन-बान-शान.
यत्र नार्यस्तु पुज्यंते , तत्र रमंते देवा
पवित्र भाव परिपूर्ण वीणापाणी को अर्पित सेवा.
पोंत गये कालीख मुख पे ये कपटी कलमकार
कर के अनाचार, दुराचार , कदाचार , व्यभिचार.
करे क्रंदन मां भारती, आहत हृदय मे हाहाकार
थमो, थामो कलम!
यह मिशन है, इसे ‘ पेशा’ न बनाओ पत्रकार.
------------ विश्वमोहन
अमित जैन 'मौलिक': तहलके से सरीसृप-सा-सरकता सन्नाटा
ReplyDeleteसन्नाटे में सिमटा बेशर्म हबस का तहलका.
लकवाग्रस्त, रुग्ण, बीमार पत्रकार- धर्म
पर छाया धृतराष्ट्र की आंखों का धुंधलका.
Wahhhh। हाहाकार मचाती दुदुम्भी।
Vishwa Mohan: +अमित जैन 'मौलिक' आभार!!!
jangid bhikm: बहुत बहुत सुंदर जी
ReplyDeleteVishwa Mohan: +jangid bhikm आभार!!!!
NITU THAKUR: Bahut khoob
ReplyDeleteJordar prahar
Vishwa Mohan: +Nitu Thakur आभार!!!