लेखनी की ग्रीवा से प्रवाहित
क्रांति की धारा थम गयी है.
कुसंस्कारों की कपटता
कलम के गले मे अटक गयी है.
सरकंडे का सरकना थम गया है
और अद्यतन प्रवहमान निर्झरिणी मे
जड़ता के जगह –जगह थक्के जम गये हैं.
अब विचारों में क्रांति का आलोड़न नहीं
नव जागृति का कोई आंदोलन नहीं.
जहर, कपट और वाक्पटुता की त्रिगुणी हुंकार,
मानो, मानवता को निगलती दानवता की डकार.
जीसस के सलीब के संगीत अब नहीं गुंजते,
गौतम के अहिंसा के अष्टांग गीत नहीं बजते
महावीर के शांति पलक अब नहीं खुलते
गांधीगिरी सिसकती है हिंसा के गलियारों में
खून से लाल पंजों के ताल स्वरित होते हैं
उदारवाद के नव परिभाषित नारों में .
परिवर्तन का नया मोहरा चल गया है
आंदोलन का चेहरा बदल गया है,
दिल बदलने की बात अब नहीं होती
मतलब के खातिर दल बदले जाते हैं.
भारत माता को हलाल करने से पहले
इंकलाब और जय भारती के संगीत बजाये जाते हैं.
लोकलुभावन मंत्र और भ्रष्ट तंत्र से
लोक को पालते हैं
जनतंत्र के नाम पर
जन का जनाजा निकालते हैं
दूषित धन, मलीन मन और
भ्रष्ट जमीर पर खद्दर आवरण.
दूसरी ओर, मैला, कुचला और फटा वसन
कोख से ही गरीबी और गुलामी को भोगता बचपन
जम्हूरियत की तपन मे तड़पता यौवन
जिंदगी की हकीकत का उपसंहार अधेड़ मन
और कर्म फल के आध्यत्मिक जीवन दर्शन
की अर्थी पर कफन से लिपटा निस्तेज तन.
फिर भी, हर १५ अगस्त और हर गणतंत्र पर
दम भर, भारत माता की जय और जन गण मन.
तंडुल के तिनके तिनके को तरसती मासुम जान
फिर भी दिल-औ-जान से गरजे- मेरा भारत महान.
आज फिर गोले गरजे, बंदुकों ने धूआं थूका
बारुदी गंधों से बोझिल हूई हवा, हाय !
धाँय, धायँ, धाँय, धाँय, धाँय, धाँय, धाँय.
सात शरीर हुए वसुधा के अंक शाय.
दो लाल जान और पांच खाकी जवान.
रंग कोई भी हो, गरीब ही हूआ कुर्बान.
अजीब दास्तान है कि जब भी
क्रांति की ऐसी घटा छाती है,
बेबसों के लहू से सिंचित धरा
उर्वरा और हरी हो जाती है.
नेता, समाजशास्त्री, बुद्धिजीवी, विचारवान
सभी बन जाते हैं, इस धरती के किसान.
फिर शुरु होती है इस उर्वरा धरा मे फसलों की कटाई,
योजना, शोधधर्मिता, समालोचना, पत्रकारिता,वैचारिक गवेषणा
सारी विधाएं लेती है एक साथ क्रंतिकारी अँगड़ाई
अब ऐसे नहीं चलेगा.
दोनों ओर विचार मंथन हुआ है
विशेष दस्ता का गठन होगा और
सुरक्षाकर्मी मोर्चेबंदी की नयी विधा जानेंगे.
ईधर नक्सल्पंथी भी ए के ४७ सीधा तानेंगे.
तय हुआ है अब पांच नहीं
पूरे पांच सौ खाकी की जान लेंगे
ईधर खद्दरधारी बगुला भगत अपने
मत्स्यभोज का फिर पुख्ता इंतज़ाम करेंगे.
सुना है, दोनों कैम्प के नेताओं ने
अपनी दूकान और बड़ी करने का मंसूबा बनाया है
इसलिए दोनों ने दूसरे को ठोस बात चीत के लिये बुलाया है.
कुछ दलबदलु भी हैं जो पहले उस दूकान पर थे,
अब इस दूकान पर आ गये हैं.
इन्ही के हाथ मे होगी मध्यस्थता की कमान.
इन पर दिल-औ- जान से कुर्बान है आला कमान.
क्योंकि इनके हाथ, आला कमान के साथ
और आला कमान के हाथ, इनके साथ
इन्हे ठेका मिला है कि बढायेंगे
अपनी अपनी दूकानों की शान.
अपनी मरघटी तांडव से चीत्कार भरेंगे
लहू से लाल निस्तब्ध श्मशान में---मेरा भारत महान.
--------------- विश्व मोहन कुमार
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