Saturday 25 January 2014

प्रणीते का त्रास !

अमावस में रजनीश का वनवास,
नील,नीरव, निरभ्र अकेला  आकाश.
भगजोगनियों संग भोगता प्रीत का रास
वसुधा पर ठिठुरती निशा  का वास
झिंगुरों का वक्र  परिहास
सर्द हवाओं का कुटिल अट्टाहास
शनैः शनैः सरकता शारदीय मास
फिर भी धरती की धुकधुकाती आस
कभी  तो मिलेंगे अपने चांद से
दूर क्षितिज के पास
पल पल दिल को दिलाये ये भास
काश, कोई  प्रणीते ना भोगे ये त्रास!
                   --------------- विश्वमोहन
                                      


15 comments:

  1. NITU THAKUR's profile photo
    NITU THAKUR
    Owner
    +1
    chand shabdon me bhav pragat karna koi aap se sikhe bahut hi marmik bat kahi hai....very nice
    Oct 16, 2017
    अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
    अमित जैन 'मौलिक'
    Moderator
    +1
    कभी तो मिलेंगे अपने चाँद से। wahh wahh
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    Oct 16, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +1
    +Nitu Thakur सादर आभार
    Oct 16, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +अमित जैन 'मौलिक' सादर आभार!!!

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  2. Kusum Kothari: अतिसुन्दर काव्य कोमल भावों से सुसज्जित,
    एक पंक्ति...
    क्षितिज चाहे मिले नही पर मन आकाश छुआ करता है।
    उत्कृष्ट।
    Vishwa Mohan: वाह! सादर आभार !!!

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  3. अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
    अमित जैन 'मौलिक'
    Owner
    +1
    वाह बहुत सुंदर। नमन
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    Oct 15, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +1
    +अमित जैन 'मौलिक' सादर आभार !!!
    Oct 15, 2017
    Roli Abhilasha (अभिलाषा)'s profile photo
    Roli Abhilasha (अभिलाषा)
    +1
    बहुत सुंदर।
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    Oct 16, 2017
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    सादर आभार !!!

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  4. आपकी लिखी रचना सोमवार. 17 जनवरी 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  5. मंजुल माला मैतियों की।

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    1. जी, अत्यंत आभार!!!! आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

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  6. विरह-मिलन सृष्टि का शाश्वत राग
    पिंजरे में सोता पक्षी अब तो जाग
    मोह-माया के बंध तोड़ के उड़ जा
    चुग ले मोती,दाना छोड़ काहे होय काग
    ----
    बहुत सुंदर शब्द विन्यास में गूँथा
    विरह का कोमल भाव।
    ---

    प्रणाम
    सादर।

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    1. एक तो पिंजर, दूजे सोया
      इस बंधन में सब कुछ खोया।
      टूटेगा बंधन, छूटेगी काया
      कौआ! कोयल! सबकुछ माया!
      अकुला मत मन, धर ले धीर,
      उड़ेगा हंस, ये छोड़ प्राचीर।
      आपकी मोहक काव्यात्मक टिप्पणी का आभार! यूँ ही आशीष बना रहे।

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  7. बहुत सुंदर रचना

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  8. भगजोगनियों संग भोगता प्रीत का रास
    काश, कोई प्रणीते ना भोगे ये त्रास
    वाह!!!!
    सराहना से परे...लाजवाब सृजन
    🙏🙏🙏🙏

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  9. पल पल दिल को दिलाये ये भास
    काश, कोई प्रणीते ना भोगे येत्रास
    विरह की बहुत बढ़िया प्रस्तुति दी 👌👌 ढेरों शुभकामनाएं और बधाई 🙏🙏

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